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कविता

पिता

हरिओम राजोरिया


वे घर से भाग रहे हैं
या कि कर रहे हैं भागने का अभिनय
खूँटी पर टँगा है उनका झोला
और वे जूते पहिन रहे हैं
उनके चले जाने का भय डरा रहा है
मैं उनका कुर्ता खींच रहा हूँ
और वे छुड़ा रहे हैं मेरा हाथ

वे कर्ज से नहीं भागे कभी
आपदाओं और बीमारियों से
भागकर नहीं गए कहीं
वे कहीं जा ही नहीं सकते थे
पर जा रहे हैं मुझसे रूठकर

मैं अब मन लगाकर पढ़ूँगा
मै उनका दिल नहीं दुखाऊँगा मैं
मैं बहिनों और माँ को नहीं रुलाऊँगा
मैं सही वक्त पर घर आऊँगा
मैं अब कुएँ में तैरने नहीं जाऊँगा
मैं पैसे चुराकर नहीं भागूँगा सिनेमा

मैं उनके भागने से डरता था
और वे तरह-तरह से डराते थे मुझे
वे आज भी स्वप्न में दीखते हैं
अपनी मैली धोती और उदास चेहरा लिए
खूँटी पर टँगा है उनका झोला
और वे भाग रहे हैं
मैं अब बड़ा हो गया हूँ
मैं अब उनका कुरता नहीं खींच सकता


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